दो भाइयों ने लगाया गजब का दिमाग, शुरू किया ऐसा काम जिसमें हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा, 3 करोड़ का टर्नओवर

नई दिल्‍ली: ऋषभ और रोहन सूरी सगे भाई हैं। वे केरल के रहने वाले हैं। इन्‍होंने खेती के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से बायोडिग्रेडेबल बर्तन बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है। इस स्टार्टअप का नाम 'कुदरत' है। उनका मकसद प्लास्टिक और कागज के बर्त

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नई दिल्‍ली: ऋषभ और रोहन सूरी सगे भाई हैं। वे केरल के रहने वाले हैं। इन्‍होंने खेती के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से बायोडिग्रेडेबल बर्तन बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है। इस स्टार्टअप का नाम 'कुदरत' है। उनका मकसद प्लास्टिक और कागज के बर्तनों की जगह ऐसे बर्तन उपलब्ध कराना है जो जानवरों के लिए भी सुरक्षित हों। सर्फिंग करते समय समुद्र में फैले प्लास्टिक कचरे ने उन्हें यह काम करने के लिए प्रेरित किया। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर करीब 3 करोड़ रुपये हो गया है। आइए, यहां ऋषभ और रोहन सूरी की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।

कोरोना के दौर में आया आइडिया

कोरोना के दौर में आया आइडिया

ऋषभ सूरी पहले CA की पढ़ाई कर रहे थे। फिर पारिवार के मोटरसाइकिल बिजनेस में आ गए। 2020 तक ऑटोमोबाइल फ्रैंचाइजी बिजनेस चलाने के बाद उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरू किया। महामारी के दौरान उन्हें खेती के दौरान निलकने वाले अपशिष्ट पदार्थ से बर्तन बनाने का आइडिया आया। उन्होंने चावल की भूसी, छिलके और पुआल (पराली) जैसे कृषि अपशिष्ट पदार्थों का इस्तेमाल शुरू किया। इनसे बने बर्तन न सिर्फ दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई जैसे महानगरों में बिक रहे हैं, बल्कि अंडमान निकोबार, मिजोरम और नागालैंड तक पहुंच रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और मेक्सिको में भी इनके खरीदार हैं। पिछले महीने उन्होंने लगभग 25,000 प्लेट, स्ट्रॉ, चम्मच और कप बेचे।

प्लास्टिक और कागज का विकल्प तलाशा

प्लास्टिक और कागज का विकल्प तलाशा

प्लास्टिक और कागज के विकल्प की तलाश में भाइयों को धान के पुआल या पराली का विचार आया। यह एक ऐसा कृषि अपशिष्ट है जिसे खेतों में छोड़ देने से पराली जलती है और प्रदूषण बढ़ता है। इस कचरे का उपयोगी उत्पाद बनाने का उन्होंने निर्णय लिया। करीब 20 महीने तक उत्पादों में सुधार करने के बाद नवंबर 2022 में उन्होंने व्यावसायिक रूप से बिक्री शुरू की। उनके उत्पादों की खासियत यह है कि ये कागज, प्लास्टिक, बगास और सुपारी के पत्तों से बने बर्तनों से बेहतर हैं। बगास में पानी रोकने की क्षमता बढ़ाने के लिए थोड़ी मात्रा में रसायन मिलाए जाते हैं, जबकि सुपारी के पत्तों से बने प्लेटों में फफूंदी लगने का खतरा रहता है।

मुश्किलों का भी करना पड़ा सामना

मुश्किलों का भी करना पड़ा सामना

2022 में ऋषभ और रोहन सूरी ने कुदरत इकोफ्रेंडली प्रोडक्ट्स नाम का स्टार्टअप शुरू किया। इसका लक्ष्य एग्री वेस्‍ट को पर्यावरण अनुकूल डिस्पोजेबल उत्पादों में बदलना था। ये उत्पाद 30-120 दिनों में मिट्टी में खुद ही गल जाते हैं। शुरुआत में दोनों भाइयों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बिजनेस खुद के पैसे से शुरू हुआ था। पहले छह महीनों में केवल 1.5 लाख रुपये की कमाई हुई। फिर उनकी मेहनत रंग लाई। स्टार्टअप इंडिया, केरल स्टार्टअप मिशन, EY GDS और अन्य संगठनों ने मदद की। उन्हें 64 लाख रुपये की वित्तीय सहायता मिली।

प्रोडक्‍ट्स की काफी बड़ी रेंज

प्रोडक्‍ट्स की काफी बड़ी रेंज

अगस्त 2022 तक 'कुदरत' ने पायलट प्रोडक्शन शुरू कर दिया। कंपनी एडवांस तकनीक का इस्तेमाल करके कृषि अपशिष्ट को कई तरह के उत्पादों में बदलती है। ये उत्पाद खाने योग्य प्लेट, गिलास, चम्मच, कटोरे, टेकअवे कंटेनर, ट्रे, कप के ढक्कन और स्ट्रॉ इत्‍याद‍ि होते हैं। कच्चा माल सीधे मिलों से लिया जाता है। फिर इसे पीसने, मिलाने और कम्प्रेशन मोल्डिंग तकनीकों से प्रोसेस किया जाता है। ये उत्पाद अब अमेजन इंडिया पर उपलब्ध हैं। कंपनी का टर्नओवर लगभग 3 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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